Saturday, 5 November 2011

जिजीविषा


नारायणा फेज दो .. के गेट पर बिंदा की जूता रिपेर करने की दूकान..
बूट पोलिश १० रुपे ..
बूट का सोल... ५० रुपे (कोई लगवाता नहीं)
तस्मे (फीते) : १० रुपे ..
पुरे दिन की कमाई ९०-१०० रुपे

खुद खर्च किये : २० रुपे का देसी का अद्धा.. १० रुपे की मच्छी.... 
५०-६० रुपे घरवाली को दिए..
......
जिन्दा रहने की चाहत....



उन्ही की दूकान पर कठोती में डूबा ततैया....
१५ मिनट से बहार निकलने की कोशिश में है..
बिंदा कहता है... कोशिश करने दीजिए..  खुदे बाहर आ जाएगा..
गर मर गया तो?
नहीं, साहेब, मरने नहीं देंगे..
खुद नहीं निकल पाया तो मैं ही निकाल दूँगा..

बिंदा, सरकार का तो कोई दोष नहीं है रे....
वे भी न मरने देती है न जीने...
तेरी तरह खेल रही है...

पर हमें तो जिन्दा रहना है.

Sunday, 30 October 2011

बोले छठ मैया की जय


मिसिर जी (श्री महाबल मिश्र, सांसद) न आये तो क्या, 
२ करोड़ रुपे देंगे - पर साल बोले थे तो क्या,
बाजुएँ हमारी सशक्त है, 
हौंसले हमारे बुलंद हैं,
बोले छठ मैया जी जय..

हम खुद ही सफाई करेंगे, 


लिपाई ... सबसे सुंदर लगे घाट अपना 
बोले छठ मैया की जय 

लो जी, सांसद जी को पता चला, लोग नाराज़ है,
तुरंत फुरंत जे सी बी बुलाया गया,
तालाब के किनारे किनारे एक नाला सा खुदवाया गया,

बोले छठ मैया की जय
 
जी, इ ट्यूबवेल ....
तेज़ धार पानी की,
नाले को भरा जाएगा,

बोले छठ मैया की जय 


Saturday, 22 October 2011

क्रांति और मौत


हुक्म राजघराने से निकलता है
त्रस्त जनता होती है
जनता क्रांति करती है,
राजघरानों का अंत करती हैं -
..... क्रांतियां
राजा की हत्या होती है,
मारे जाते हैं,
क्रांतिकारियों द्वारा...
फिर यही क्रांतियां
तानाशाह को जन्म देती हैं.
और क्रांतिकारी भी
तानाशाह बन जाते हैं
आखिर वो भी
मारे जाते हैं,
कई बार मारे जाने वाले
तानाशाह नहीं भी होते...
सिपाही मात्र होते हैं,
पर मारे जाते हैं,
क्रांति के सिपाहियों द्वारा...
पर तानाशाह कभी मरते नहीं
सदा मारे जाते हैं..
जनता मरती है....
कुत्ते की मौत कहते हैं जिसे,
तानाशाह को वो मौत भी नहीं मिलती
क्योंकि वो तो रिज़र्व रहती है
रोड पर सोनेवाले के लिए
सुखपूर्वक मरने के लिए.

Saturday, 20 August 2011

बारिश और क्रांति

यूँ ही एक रिमझिम दुपहरी में ...
बलजीत नगर के चोहराए पर
फोटू क्लिक किया की ....
क्वोनो क्रांति के काम आएगी ..

जय राम जी की.
बारिशों जैसे -
क्रांतियों की भी रुत होती है.. 
और आजकल दोनों ही एक साथ हैं.....
दुपहिया वाला और रक्सेवाला सवारी सहित ..
बारिश से बचता है..... और क्रांति से भी 
पनाह मांगता है...... 
बारिश और क्रांति दुनो से ...
टाइम खोटी .... पैसा खोटी....

मारुती वेन वाला बेफिक्र...
साधनसम्पन..
न बारिश की चिंता...
न क्रांति की... 
"टाइम मिला तो मोमबत्ती जलाएंगे" 
फिलहाल माल सही जगह पहुचना है.

और उ जो जूस की दूकान पर खड़े है.... 
उ बारिश में नहीं भीगना चाहते ...
पर क्रांति की बातें करते हैं ... 

कोफ़्त होती है ... जूसवाले को.
सुसरा जूस का दुकाने नहीं हुए 

Sunday, 14 August 2011

चलिए चलते हैं....


मंजिले हैं तो रास्ते हैं ...
रास्ते तो हैं -
पर बारिश भी है ...
और छाता नहीं ...
... पर जाना तो है 
चलिए, चलते है....
यूँ ही भीगते भीगते

कुछ ख्यालों को 
बुनते हुए..
चहलकदमी करते हुए...
अंदर - बाहर 
भीगना है..
कुछ बारिश भिगोयेगी
और कुछ विचार...

चलिए चलते हैं....
यूँ ही भीगते भीगते