Saturday, 20 August 2011

बारिश और क्रांति

यूँ ही एक रिमझिम दुपहरी में ...
बलजीत नगर के चोहराए पर
फोटू क्लिक किया की ....
क्वोनो क्रांति के काम आएगी ..

जय राम जी की.
बारिशों जैसे -
क्रांतियों की भी रुत होती है.. 
और आजकल दोनों ही एक साथ हैं.....
दुपहिया वाला और रक्सेवाला सवारी सहित ..
बारिश से बचता है..... और क्रांति से भी 
पनाह मांगता है...... 
बारिश और क्रांति दुनो से ...
टाइम खोटी .... पैसा खोटी....

मारुती वेन वाला बेफिक्र...
साधनसम्पन..
न बारिश की चिंता...
न क्रांति की... 
"टाइम मिला तो मोमबत्ती जलाएंगे" 
फिलहाल माल सही जगह पहुचना है.

और उ जो जूस की दूकान पर खड़े है.... 
उ बारिश में नहीं भीगना चाहते ...
पर क्रांति की बातें करते हैं ... 

कोफ़्त होती है ... जूसवाले को.
सुसरा जूस का दुकाने नहीं हुए 

16 comments:

  1. @फिलहाल माल सही जगह पहुचना है

    फ़िलहाल जीवित रह पाये तो बेहतरी की बाद में सोचेंगे।

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  2. वाह सुन्दर अन्दाज़ है बात कहने का।

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  3. अपनी बात रखने का अलग अंदाज़ है आपका ...बाबा जी ........बहुत खूब

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  4. बाबा से खफा होने वाले --
    बाबा की बकबक बर्दाश्त करें ||
    रहस्य को समझें ||
    खूबसूरत तरीका ||

    बधाई ||

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  5. बारिश और क्रांति दुनो से ...
    टाइम खोटी .... पैसा खोटी....

    सटीक पकडा, बहुत शुभकामनाएं.

    रामराम.

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    कुंडली की
    पूँछ

    महा नाट्य-शाला भरे, दीवारों को तोड़ |
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  8. बहुत ख़ूबसूरत और सटीक प्रस्तुति..बहुत रोचक प्रस्तुतीकरण..

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  9. और उ जो जूस की दूकान पर खड़े है.... उ बारिश में नहीं भीगना चाहते ...पर क्रांति की बातें करते हैं ..
    sateek vayangya ....badhyee..sawikariye

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  10. व्यंग्य की तलवार की धार जबरदस्त है| इससे बचे ना कोय......

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  11. सही कहा...

    बारिश और क्रांति दुनो से ...
    टाइम खोटी .... पैसा खोटी....

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  12. सौभाग्य की आपके ब्लॉग पर आना हुआ।

    बारिश में नहीं भीगना चाहते ...
    पर क्रांति की बातें करते हैं ...
    विद्वतापूर्ण तरीके से....


    कितनी आसानी से आपने वो बात कह दी जिसे लिखने के लिए उपन्यास लिखा जाता है। छोटी सी बात में बड़ी चीजें खोज निकाली जो आपके संवेदना का परिचायक है।

    सादर

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  13. आपका अंदाज़ पसन्द आया! बधाई!

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  14. बढ़िया चित्र और उसपर व्यावहारिक कविता ! अंदाज़े बयां पसंद आया !

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