नारायणा फेज दो .. के गेट पर बिंदा की जूता रिपेर करने की दूकान..
बूट पोलिश १० रुपे ..
बूट का सोल... ५० रुपे (कोई लगवाता नहीं)
तस्मे (फीते) : १० रुपे ..
पुरे दिन की कमाई ९०-१०० रुपे
खुद खर्च किये : २० रुपे का देसी का अद्धा.. १० रुपे की मच्छी....
५०-६० रुपे घरवाली को दिए..
......
जिन्दा रहने की चाहत....
उन्ही की दूकान पर कठोती में डूबा ततैया....
१५ मिनट से बहार निकलने की कोशिश में है..
बिंदा कहता है... कोशिश करने दीजिए.. खुदे बाहर आ जाएगा..
गर मर गया तो?
नहीं, साहेब, मरने नहीं देंगे..
खुद नहीं निकल पाया तो मैं ही निकाल दूँगा..
बिंदा, सरकार का तो कोई दोष नहीं है रे....
वे भी न मरने देती है न जीने...
तेरी तरह खेल रही है...
तेरी तरह खेल रही है...
यथार्थ को दर्शाती बहुत सटीक प्रस्तुति...
ReplyDeleteयथार्थ और जन भावनाओ को दर्शाती गजब की झांकी ...बोल पड़ी ..ऐसा ही है
ReplyDeleteभ्रमर ५
बिंदा, सरकार का तो कोई दोष नहीं है रे....
वे भी न मरने देती है न जीने...
तेरी तरह खेल रही है...
पर हमें तो जिन्दा रहना है.
यह अजब सा गड़बड़झाला
ReplyDeleteजिजीविषा और संतोष
का
अनेक व्यक्तियों को ही नहीं
बल्कि सनातन जीवित रखे है
एक महान राष्ट्र को भी!
ध्यानाकर्षण का आभार!
यथार्थ दर्शन कराती प्रस्तुति!
ReplyDeletesarthak rachna ke liye aabhar
ReplyDeleteजीवन की कुछ सच्चाइयों को दिखाती है आपकी पोस्ट ...
ReplyDeleteजीवन की सच्चाई बतलाती सुंदर रचना,
ReplyDeleteलाजबाब पोस्ट ....
मेरे नई पोस्ट पर आप का स्वागत है|
एक पैगवा के बाद हिसाब और लेखनी जोरदार हो जाला...
ReplyDeleteकब से दार्शनिक हो गए???