Saturday, 5 November 2011

जिजीविषा


नारायणा फेज दो .. के गेट पर बिंदा की जूता रिपेर करने की दूकान..
बूट पोलिश १० रुपे ..
बूट का सोल... ५० रुपे (कोई लगवाता नहीं)
तस्मे (फीते) : १० रुपे ..
पुरे दिन की कमाई ९०-१०० रुपे

खुद खर्च किये : २० रुपे का देसी का अद्धा.. १० रुपे की मच्छी.... 
५०-६० रुपे घरवाली को दिए..
......
जिन्दा रहने की चाहत....



उन्ही की दूकान पर कठोती में डूबा ततैया....
१५ मिनट से बहार निकलने की कोशिश में है..
बिंदा कहता है... कोशिश करने दीजिए..  खुदे बाहर आ जाएगा..
गर मर गया तो?
नहीं, साहेब, मरने नहीं देंगे..
खुद नहीं निकल पाया तो मैं ही निकाल दूँगा..

बिंदा, सरकार का तो कोई दोष नहीं है रे....
वे भी न मरने देती है न जीने...
तेरी तरह खेल रही है...

पर हमें तो जिन्दा रहना है.

8 comments:

  1. यथार्थ को दर्शाती बहुत सटीक प्रस्तुति...

    ReplyDelete
  2. यथार्थ और जन भावनाओ को दर्शाती गजब की झांकी ...बोल पड़ी ..ऐसा ही है
    भ्रमर ५
    बिंदा, सरकार का तो कोई दोष नहीं है रे....
    वे भी न मरने देती है न जीने...
    तेरी तरह खेल रही है...

    पर हमें तो जिन्दा रहना है.

    ReplyDelete
  3. यह अजब सा गड़बड़झाला
    जिजीविषा और संतोष
    का
    अनेक व्यक्तियों को ही नहीं
    बल्कि सनातन जीवित रखे है
    एक महान राष्ट्र को भी!

    ध्यानाकर्षण का आभार!

    ReplyDelete
  4. यथार्थ दर्शन कराती प्रस्तुति!

    ReplyDelete
  5. जीवन की कुछ सच्चाइयों को दिखाती है आपकी पोस्ट ...

    ReplyDelete
  6. जीवन की सच्चाई बतलाती सुंदर रचना,
    लाजबाब पोस्ट ....
    मेरे नई पोस्ट पर आप का स्वागत है|

    ReplyDelete
  7. एक पैगवा के बाद हिसाब और लेखनी जोरदार हो जाला...
    कब से दार्शनिक हो गए???

    ReplyDelete